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Friday, December 21, 2018

इश्क़ हक़ीक़ी

21 दिसम्बर 2018 रात क़रीब 11 बजे विसाल अपनी ख़्वाबगाह में अकेला कभी गुनगुनाता है "...तेरे क़दम मैं चूम-चूम कर, करूँ इश्क़ का रुतबा ऊपर..."
कभी पाकीज़ा फ़िल्म का डायलॉग
"आपके पाँव देखे, बेहद हसीन हैं, इन्हें ज़मीन पे मत रखियेगा, मैले हो जाएंगे"
दोहराता और मुस्कुरा रहा है!

दरअसल आज दफ़्तर में कुर्सी लग जाने से ज़ोया के पाँव में हल्की मोच आ गयी और वो दर्द से बिलबिला उठी, विसाल तुरंत हरकत में आया और उसको कुर्सी पर बैठा कर तेजी से फर्स्ट-एड बॉक्स से दर्द-निवारक स्प्रे ले आया। मोच वाली जगह पर स्प्रे करके अपना हाथ पौंछने वाला तौलिया लपेट कर हल्की मसाज करके उसे आराम पहुंचाने की कोशिश की।।

शाम को ज़ोया दफ्तर से तयशुदा वक़्त पर घर को निकली मगर विसाल को ज़रूरी फ़ाइल निपटाने की खातिर रुकना था।

थोड़ी देर बाद जब दफ्तर से सब लोग चले गए तब विसाल की नज़र अपने तौलिये पर पड़ी जिसे ज़ोया ने जाते वक्त निकाल कर रख दिया था। तौलिया अभी भी पैर में लिपटने वाले अंदाज़ में गोल मुड़ा हुआ था, विसाल उसे उठा कर अपने कुर्सी पर बैठ गया और मुस्कराते हुए उसे देखने लगा उसे अभी भी मुड़े हुए तौलिये में ज़ोया के पाँव होने का एहसास हो रहा था।
फिर जाने उसके जी में क्या आया कि तौलिये को सीने से लगा लिया, फिर उसे खोल कर उस हिस्से को बड़ी शिद्दत से चूमा जहाँ ज़ोया का पांव उसमें लपेटा गया था।
हालाँकि तौलिये से अब स्प्रे की गंध आ रही थी मगर विसाल को ज़ोया के जिस्म की मदहोश कर देने वाली महक का ही एहसास हो रहा था।
उम्र का चौथा दशक आधा पार कर लेने के बावजूद यों नौजवान लौंडो सी इस हरक़त पर खुद विसाल को हंसी छूट गयी मगर फिर भी वो इस पागलपन को कई बार दोहरा गया।।

विसाल को इस वक़्त भी अपनी ही सांसो से ज़ोया की महक महसूस हो रही है।
वो आखिर खुद को रोक नही पाया और ज़ोया के मोबाइल पर मैसेज करके उसके पाँव के दर्द का हाल पूछ ही लिया है।
और रह रह कर चेक कर रहा है कि मैसेज पढ़ा गया है या नही, वो ऑनलाइन आये और इसका मैसेज बिना पढ़े ही छोड़ दे, या देख कर भी कोई जवाब ना दे ऐसे ना जाने कितनी ही संभावनाएं विसाल के जेहन में घुमड़ रही है।
ज़ोया की कदमबोसी का मुक़द्दस ख्याल लिए विसाल नीँद के आगोश में समा रहा है।।।

Friday, August 11, 2017

चीकू को समर्पित

नींद आती ना रातों में, अब कोई ख्वाब ना आयेगा
हमें उतार चुका मन से, अब कोई और ही आयेगा

जानता हूं हक़ीक़त सब, मगर मंज़ूर नहीं होता
ज़हन कहता है कुछ दिन में, फिर वो लौट आयेगा!!

~आवारा ~

Wednesday, August 9, 2017

चीकू को समर्पित

मुझसे रोज़ मिलता है, मगर मिला अभी नहीं
बरसों का ये ताल्लुक, अब अनजान तो नहीं

मन में बना बैठा है फिर क्यों भ्रम मेरे लिए

जो उसने समझ लिया, मैं वो क़िरदार ही नहीं

*~आवारा ~*

Tuesday, August 8, 2017

चीकू को समर्पित

इल्ज़ाम मेरे सिर पर, हर मसले का आता है
गुनाह जो किया नहीं मैंने, वो थोपा जाता है

मेरी बेगुनाही के गवाह ख़ामोश है अब तो
मेरा वकील ही मुझको, गुनाहगार बताता है!

~आवारा ~

Saturday, August 5, 2017

चीकू को समर्पित

कभी अपनी सी लगती है, कभी बेगानी लगती है,
बहुत लड़ती-झगड़ती है, बड़ी मनमानी करती है,

उसकी आंखों में सिमट आती झलक दुनिया के हर रिश्ते कि..
वो अपना दोस्त कहती हैं, मुझे ज़िंदगानी लगती है!!!

*~ आवारा~*

चीकू को समर्पित

तुझे अपना समझता हूँ, तभी नसीहतें करता हूँ,
मतलब नहीं ईसका,सयाना खुद को समझता हूँ,

पाया जो तज़़ुर्बा मैंने अपनी नादानी से,
तू महफूज रहे उन से, मैं जिन कांटों से गुज़रा हूँ!!!

~ *आवारा* ~