Wednesday, July 23, 2014

 मैं रोज़ाना शाम को बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रहा होता हूँ।।
वहीँ से एक लड़की ऐसी भी गुज़रती है जिस पर मेरी निगाहें बेसबब रुक जाया करती हैं।

मासूम सी सूरत, भोली सी सीरत, करीने से संवरी जुल्फें, सलीके से पहने कपड़े, गर्दन झुका कर मगर नज़रें उठा कर चला करती है वो।
जब कभी हमारी नज़रें टकराती, वो तत्षण अपनी नज़रें झुका लेती; उसके चेहरे पर उस वक़्त कोई 'भाव' नहीं होता था।
होता भी कैसे.?
भले घर की लडकियाँ सरे-राह किसी अजनबी को 'भाव' दिया भी नहीं करती।

आज शाम जब वो गुज़री तब उस वक़्त  मै धुआं उड़ा रहा था,
रोज़ के मुताबिक मैंने उसकी आँखों में झाँका;  उसने नज़रें नीचे की;
 मगर आज नज़रें नीचे करते वक़्त उसने सड़ा सा मुँह बना लिया और अपनी गर्दन को हल्का सा झटका दिया।

उसका ऐसा करना मेरे ज़हन में कई अन्जाने से सवाल पैदा कर गया।